Wednesday, September 28, 2011


22 मार्च 2011 बिहार प्रदेश अपने गठन के 99 वर्श पूरा करेगा और बिहार 100वें साल में प्रवेश कर जायेगा । 23 मार्च 2011 से 22 मार्च 2012 तक का यह पूरा वर्श बिहार प्रदेश गठन का शताब्दी वर्श के रूप में मनायेगा । इस शताब्दी वर्श पर हम हर बिहार वासी अपने गौरवमयी अतित को याद कर -हम इठलायेंगे एवं इतरायेंगे भी साथ ही साथ हम बिहारवासी एक नया संक्लप भी लेंगें कि जिस तरह से हमारे पूर्वजों ने हमें गौरवमयी अतित दिया है तो हमें भी अपने आने वाले पीढ़ियों को इससे भी बेहतर समृद्ध, संस्कार एवं संस्कृति दें ताकि हमारे आने वाले पीढी जब अगला एक और शताब्दी पूरा करें तो हम पर वों गौरव कर सकें ।
बिहार की पावन धरती आदिकाल से ही उर्वरा रही है। यहाँ की क्यारियों में सदैव नायाब फूल खिले है, जो विश्व-समुदाय के हर घर-आंगन में खुशबू प्रदान करते हुए सुवासित किया है। बहुजन-सुखाय, बहुजन-हिताय की मंगल कामना से ओत-प्रोत कई ऐसे सपूत हुए, जिन्होने जगत को दया करूणा, शांति, अहिंसा जैसे मानवीय गुण-सूत्र दिये । कई ऐसे विद्वान, प्रतापी एवं सूरमा राजा हुए जिनका नाम आज भी स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
यह विश्व की वही संस्कार भूमि है जिसने कभी बुद्ध और महावीर पैदा किये थे । जिसने हमें चाणक्य और चन्द्रगुप्त दिये थे । गणतंत्र का सूत्रपात यहीं की धरती वैशाली से हुआ । गौतम, कपिल, कणाद, पतंजलि, आर्यभट, वाल्मीकि, दिनकर, विद्यापति जैसे उद्मट्ठ विद्वान यही के सपूत थे । प्रियदशी अशोक से लेकर वैशाली की नगरवधू आम्रपाली पर हर बिहारी के मन पर मनोराज्य करता हैं, अगर हम बिहारवासी इतिहास के छात्र की आंखों से देखूँ, यही कही उनके चरण चिन्ह अंकित हुये होंगे दब गये होंगे इसी पाटलिपुत्र की घूल में । हमें उनसे न केवल बुद्ध-महावीर का तत्वज्ञान महसूस होगा अपितु उसी में उस स्वर्णिम संस्कृति की नुपूर- झंकार सुनाई देगी । कुछ अनुगूंज उस आम्रपाली के घुंघरू की, कुछ प्रतिघोश चाणक्य के जीवनसुत्रों के और यह परम्परा अशोक से लेकर लोकनायक जयप्रकाशनारायण तक है । सम्राट अशोक की युद्धगलानि, भगवान बुद्ध की करूणा और महावीर की अहिंसा युग युगान्तर तक किसी भी संवेदनशील सहदय मनुश्य की झोली को भरने की क्षमता रखते है। गांधी को गांधी बनाया है बिहार ने । चम्पारण प्रकरण हमारे सामने है। शेरशाह शूरी जैसे प्रतापी राजा यही की धरती के उपज थे । बिहार ने देश को पहले राश्ट्रपति दिये है और इसी बिहार ने हमें एक विद्यापति दिया- एक दिनकर भी । पूरे विश्व में बिहार ही कदाचिंत एक ऐसा प्रदेश होगा जहाँ लक्ष्मी की तुलना में सरस्वती को अधिक महत्व मिलता है।
यहाँ कुछ ऐसे भी सपूत हुए जो अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर संसारिकता के चकाचौंध और माया के सम्मोहन को त्याग करते हुए दीन-हीन, गरीब-दलितों को गले लगाया और उसके सामाजिक, मानसिक और आर्थिक स्तर को उ्पर उठाया । स्वामी सहजानन्द सरस्वती जैसे लोग भी हमारे ही मिट्टी में पैदा लिए ।
आध्ुानिक बिहार के निर्माता डॅा. श्री कृष्ण सिंह स्वतंत्रता-संग्राम के अग्रगण्य सेनानियों में से रहे है । इनका सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र एवं जन-सेवा के लिये समर्पित था । नव बिहार के निर्माता के रूप में बिहार केसरी डॅा. श्रीकृष्ण सिंह का उदार व्यक्तिगत, उनकी अप्रतिम कर्मठता एवं उनका अनुकरणीय त्याग, बलिदान हमारे लिए एक अमूल्य धरोहर के समान है, जो हमे सदा-सर्वदा राष्ट्रप्रेम एवं जन-सेवा के लिए अनुप्रेरित करता रहेगा । आज का विकासोन्मुख बिहार डॅा. श्रीकृष्ण सिंह जैसे महान शिल्पी की ही देन है, जिन्होंने अपने कर्मठ एवं कुशल करो द्वारा राज्य की बहुमुखी विकास योजनाओं की आधरशिला रखी थी । इनके मुख्यमंत्री काल में बिहार विकास के पायदान पर भारत में नंबर पर था । बिहार हमेशा उनका ऋणी रहेगा ।
बिहार के पास इतिहास और पुराण की वह समृद्धि है जेा विश्व के किसी भी समृद्ध राश्ट्र के पास नहीं है। जरा पूछिये जाकर यूरोप और अमेरीका के लोगों से - क्या उनके पास नालन्दा की जूती तक थी ? उन्होने किसी बुद्ध, किसी महावीर, किसी अशोक या कौटिल्य को पैदा किया था ढाई हजार साल पूर्व ?
नालंदा, विक्रमशिला और ओदवन्तपुरी जैसे विश्वविख्यात विश्वविद्यालय यहीं स्थापित थे । संपूर्ण विश्व में ज्ञान की अलख जगाने वाला नालंदा विश्वविद्यालय महज एक विश्वविद्यालय नहीं अपितु शैक्षणिक, सांस्कृतिक एव वैचारिक का एक अनुपम केन्द्र था । पाँचवी शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी तक इस अप्रतिम शिक्षा केन्द्र का शानी समकालीन विश्व में कोई दूसरा नहीं था । इसने भारत की सांस्कृतिक एकता की जमीन तैयार की और आज भी इसकी महान् विरासत के बदौलत भारत वैश्विक सांस्कृतिक एकता का सूत्रधार की अहम भूमिका निभा रहा है। नांलदा विश्वविद्यालय में कल्पनाओं की नई उड़ान एवं विचारों को एक नया मंच प्रदान किया जाता था । बिहार में नालंदा और विक्रमशिला दो ऐसे विश्वविद्यालय थे जिनमें अनेक देशों के छात्र और विद्वान अध्ययन एवं अनुसंधान के लिए आते थे । आज अगर भारत में सांस्कृतिक एकता एवं वैचारिक सपन्नता मौजूद है, तो इसका पूरा श्रेय उस शिक्षा केन्द्र को जाता है। आवश्कता है कि अपनी इन धरोहरों को सुरक्षिक्ष्त रखनंे कीे । आज जब राज्य के छात्रों और बुद्धिजीवियों में बाहर जाने और पश्चिम के आधुनीकरण की प्रवृति बढ ़रही है, ऐसी स्थिति में भारतीयों में आत्मविश्वास एवं स्वाभिमान की वृद्धि करेगा तथा अपनी शिक्षा व्यवस्था का भातीय या बिहारीपन का भाव, भूमि पर बनाए रखते हुए युगीन चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाने के लिए सहायक होगा ।
बिहार कोई बीती चीज नहीं है यारों ! यह पूण्य भूमि विश्व को यूगांे से रास्ता दिखलाती रही है और आगे भी दिखलाती रहेगी ।
दिनकर की समृद्धि काव्यसृश्टि अतीत का अवाहन करती रही । कुरूक्षेत्र हो या उर्वशी या परशुराम की प्रतीक्षा: दिनकर की हुंकार सर्वत्र किसी न किसी रूप में सुनाई देगी । ऐसी राश्ट्र चेतना शायद ही किसी अन्य कवि में उजागर हुयी । जिस भूमि में दिनकर की काव्यरश्मियों ने उजाला उगला हो, भला उसे हम गयी बीती कैसे समझ लें ?
एक नये बिहार का निर्माण के लिए
सौवें साल का संकल्प, निश्चित ही विचारनीय है
कि कैसे एक गौरवशाली बिहार बनायें जाय ?
जो कुछ वक्त के लिए ठहर सा गया था ।
सौवें साल का संकल्प एक नये बिहार का निर्माण के लिए विकास रूपी रथ के अगर चार पहिया मान लिया जाय तो पहला गौरवमयी अतित को बार-बाीर हमें याद करना होगा और अपने वर्तमान पीढ़ि को इस गौरवमयी अतित से अवगत कराना होगा, दुसरा शिक्षा , तीसरा यूवाओं को स्वरोजगार एवं रोजगार एवं चौथा महिला सशक्तिकरण है।
गौरवमयी अतित को याद करना
इक्वाल को भी इकरार करना पड़ा था कि कुछ बात है कि
हस्ती मिटती नहीं हमारी ....!
वह राज हमारे ग्रन्थों में छिपा पड़ा है जितना शीघ्रता से हम उनकी ओर उन्मुूख हों, उतना ही त्वरित हमारा उद्धार होगा - विश्व की श्रेश्ठ, मेधावी प्रजा के रूप में बिहारी होने का गैारव हमारे पूर्वजों ने विरासत के रूप में दिया है। आगे इसी विरासत के पद चिन्हों पर नये सफलता के सोपान बिहारवासी अवस्य ही गढ़ेंगे ।
किसी अन्य व्यक्ति, देश, समाज अथवा संस्कृति से अपरिचित होना कोई ऐसी बात नहीं है जो कि बहुत चिंताजनक हों लेकिन यदि हम और आप अपने ही राज्य , अपने ही देश, अपने ही समाज, अपनी ही सभ्यता तथा अपनी ही संस्कृति से परिचित नहीं हैं तो आप का होना देश, समाज, सभ्यता तथा संस्कृति सभी के लिये हानिकारक है। आप की स्थिति उस अज्ञानी बालक की तरह है जो अपने अबोध अवस्था में मूल्यवान वस्तुओं को भी तोड़-फोड़ देता है, बिना यह जाने कि उस वस्तुु के निर्माण में कितना परिश्रम व्यय हुआ होगी। हम भी अपने ही देश को, अपनी ही संस्कृति को केवल इसीलिये क्षति पहुंचाते हैं कि हमें ज्ञात ही कब है कि कितने हजार सालों में तैयार हुई है यह संस्कृति, यह देश । यह जो व्यक्ति है, जो समाज की संरचना करता है, समाज जो संस्कृति का निर्माण करता है, यह व्यक्ति यदि आज हम हैं तो निश्चित रूप से कल, हमारे बाद की पीढी ‘यह व्यक्ति’ बनेगी तथा यह सब यूंही चलता रहेगा । पहले जान तो लीजिए अपनी सभयता के इतिहास को, अपनी संस्कृति को, तब बताइयेगा कि जो संस्कृति आप हस्तांतरित कर रहे हैं, क्या यह वही है जो हमारी है या फिर उसके श्रम में हम कहीं वह अपसंस्कृति तो नहीं थामें हैं जिसे कतिपय शरारती तत्त्वों ने हमारी बताकर न जाने कब हमारे हाथ में थमा दिया था ।
यह सम्भव है कि संसार में जो बड़ी-बड़ी ताकतें काम कर रही हैं, उन्हें हम पूरी तरह न समझ सकें, लेकिन, इतना तो हमें समझना ही चाहिए कि हमारा बिहार / भारत क्या है और कैसे इस राज्य/राश्ट्र ने अपने समाजिक व्यक्तित्त्व का विकास किया है। आज जो कुछ है, उसकी रचना में हर जनता का योगदान है। यदि हम इस बुनियादी बात को नहीं समझ पाते तो फिर हम बिहार / भारत को भी समझने में असमर्थ रहेंगे । और यदि बिहार / भारत को हम नहीं समझ सके तो हमारे भाव, विचार और काम, सब-के सब अधूरे रह जायेंग और हम प्रदेश /राश्ट्र की ऐसी कोई सेवा नहीं कर सकेंगे, जो ठोस और प्रभावपूर्ण हो ।
शिक्षा का विकास
विकास रथ का दुसरा पहिया शिक्षा है। शिक्षा का मतलब ज्ञान है और ज्ञान का मतलब आत्मसामान है। जिसे सही अर्थो में सही दिशा देकर चलायमान करने की आवश्यकता है । हमें स्तरीय एवं गूण्वत्ता पूर्ण शिक्षा का अधिक से अधिक केन्द्र खोलना होगा जहाँ सिर्फ किताबी ज्ञान ही न मिले बल्कि हर छात्र को एक जिम्मेदार नागरिक, संपूर्ण मानव तथा मर्मश्र बनाने की प्रेरणा तथा मार्गदर्शन भी मिले । छात्र जीवन संघर्श के लिये अपने को संपूण्रता में सुयोग्य व सुसंस्कृत बना सकें और खास ध्यान इस बात पर रखा जाय कि ऐसी प्रणाली सब के लिये सुलभ हो चाहे वह कितना भी निर्घन क्यों न हो । शिक्षा का केन्द्र गाँव -गाँव तक होना चाहिए । इसी शिक्षा के द्वारा हम आने वाले पीढ़ियों में सुशक्त विचार वाले उत्कृश्ट मानव की परिकल्पना कर सकते है। जिसमें सर्वप्रथम बच्चों को पहले चरित्र निर्माण जैसे विंदुओं पर विशेश ध्यान देना होगा । आज की यूवा में इसका घोर अभाव पाया जा रहा है। जिससे समाज में धृवित कार्य बच्चे भी कर लेते है। रोजगार परक शिक्षा पर भी विशेश बल दिया जाना चाहिए । मेरा ऐसा मानना है कि अभी तक हमलोग मैकाले कि दोशपूर्ण शिक्षा-पद्धति को ही चला रहें है इसपर एक बडी चर्चा या इसके बदलाव और प्रासांगिगता पर एक बड़ा चर्चा होना चाहिए ।
महिलाओं का विकास
विकास के लिए महिलाओं का विकास होना अति आवश्यक है महिलाओं की उपेक्षा कर हम स्वस्थ्य बिहार की परिकल्पना नहीं कर सकते है। महिलाओं को सम्मान एवं वैचारिक शक्ति प्रदान करना होगा । रविन्द्र नाथ टौगोर ने कहा था कि एक लडकी केा पढाने का मतलब होता है पूरा परिवार को शिक्षित करना । इसलिए बिहार के हर व्यक्ति और सरकार का पहल या मिशन होना चाहिए की हर घर की लडकियां शिक्षित हो और उसे उच्च शिक्षा भी दिया जाना चाहिए । महिलाओं के प्रति रूढिवादिता को समाप्त किया जाना चाहिए ।
युवाओं का विकास
युवा किसी भी प्रदेश और राश्ट्र की सबसे बडी संपति है । प्रदेश के निर्माण में युवा शक्ति की भूमिका बहूत ही महत्वपूर्ण होती है। युवाओं के पास लोकतंत्र में अच्छे सरकार बनाने की पूरी ताकत भी होता है । युवाओं में अपना स्वरोजगार शुरू करने पर विशेश बल दिया जाना चाहिए । नौकरी करने के बजाय नौकरी देने का नजरीया युवाओं को रखना होगा । युवाओं को आपने चरित्र निर्माण पर भी विशेश बल देना चाहिए । बिहार के ही युवा बिहार से बाहर के कम्पनियों में बहुत ही कुशलता का परिचय देते है लेकिन जैसे ही वो बिहार में आते है तो संस्था में क्वालिटी वर्क या आउटपूट नही दे पाते हैं ।यह भी हमारे विकास में बाधक है। अगर आप किसी भी संस्थान में कार्य कर रहें है तो पुरा का पुरा समय अपने कार्य के प्रति दिया जाना चाहिए । यहाँ के संस्थाओं का विकास उसी से समभव है। मेरे अपने व्यक्तिगत नजरिये से इसका घोर अभाव है। संस्था में कार्य के प्रति पूर्ण जवाबदेही लेना होगा ।
अपने प्रदेश के लिए कुछ करने की ललक और जूनून होना चाहिए -
आज बिहार के वैसे लोग जो प्रतिष्ठित संस्थानों, सरकारी विभागों के बड़े पदाध्किारी बड़े शहरों एवं विदेशों में कार्यरत है या आज वो जहाँ भी अपने मुकाम पर है । अपने जन्मभूमि/गाँव के विकास के लिए कुछ करें । वैसे लोग जो मनेजमेन्ट, इंजिनियरिंग या अन्य क्षेत्रों में उच्च शिक्षा प्राप्त की है उनका ध्यान बिहार के प्रति सकारात्मक एवं वों अपने लम्बे जीवन अन्तराल में कुछ न कुछ इनोवोटिभ आईडिया के द्वारा बिहार में करने की सोचे तथा सरकार एवं समाज का भी सकारात्मक सहयोग्य मिलना चाहिए ।
सौवें साल पर सरकार की ओर से निम्नलिखित पहलूओं पर संकल्पित कार्य योजना बनाने का आवश्यकता है ।
गाँव के विकास पर पूरा ध्यान होना चाहिए
विकास की सबसे अधिक जरूरत गाँव को है। गाँव में शिक्षा, युवाओं को रोजगार, किसानों को उन्नत खेती, महिलाओं की जागरूकता इत्यादि मुद्दों को प्राथमिकता देना होगा । राष्ट्रपिता महात्मा गाँध्ी ने कहा था- ‘‘भारत की आत्मा गाँवों में बसती है।’’ गाँवों का विकास से ही राष्ट्र का विकास संभव है। भारत की लगभग 100 फीसदी जनता गाँवों में गुजर-बसर करती है। ग्रामीणों के विकास में हीं राष्ट्रीय विकास निहित हैं। कृशि में परंपरिक विधि को छोडकर उन्नत खेती की विधि को अपनाना होगा । कृशि आधारित उद्योग -धंधो को प्राथमिकता दिया जाना चाहिए ।
इंफरास्टक्चर निर्माण पर विशेश ध्यान दिया जाना चाहिए ।
किसी भी प्रदेश या देश के विकास में इंफ्रा स्टक्चर एवं अन्य संसाधनों के निर्माण बहुत ही आवश्यक पहलू है और सरकार की ओर से इसपर पहल प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए । अगर देखा जाय तो बिहार में इसका बहूत ही आभाव है। सडक, भवन निर्माण , बिजली जैसे मूलभूत जैसेआवश्यकताओं के निर्माण पर जोर दिया जाना चाहिए । शिक्षण संस्थानों के लिए ं एजूकेशन जोन के रूप में कुछ स्थानों को चयनित करना होगा, जहाँ देश के प्रतिश्ठित स्ंस्थान इस निर्धारित एजूकेश्न जोन में अपना शौक्षणिक संस्थान शूरू करें । इसको सरकार की ओर से प्राथमिकता मिलना चाहिए । पर्यटन क्षेत्रों को विकास करना होगा और पर्यटन को बड़ावा दिया जाना चाहिए । बाढ़ बिहार के विकास में बहुत बड़ा अवरोध है और इसका स्थाई समाधान ढुंडा जाना चाहिए । स्वास्थ्य केन्द्रों का विकास जरूरी है । यह इंसान की जीवन रक्षक पहलू हैं और सरकार को इसके प्रति सजग रहना होगा । बिहार में एम्स के तर्ज पर अति -आधुनिक स्वास्थ्य केन्द्र पटना के साथ -साथ कमीशनरी शहरों में खोला जाना चाहिए ।
भ्रश्टाचार मुक्त बिहार की परिकल्पना करना होगा ।
हर बिहार वासी को भ्रश्टाचार मुक्त बिहार बनाने का संकल्प लिया जाना चाहिए । यह समस्या सबसे जटिल और भयावह है । यह हमारे प्रदेश और देश को दिमक की तरह चाट रहा है। इससे हमारा समाज दो पाटो में विभक्त हो चुका है। अब कम से कम इस सौवें साल का संकल्प हर बिहार वासीयों को लेना होगा । बिहार सरकार अपनी ओर से देश में भ्रश्टाचार मुक्त बिहार बनाने की दिशा में पहल कर चुकी है। भ्रश्टाचार मुक्त बिहार बनाने में बिहार सरकार की भूमिका अग्रगनी है। हम बिहारवासीयों को इसका स्वागत करना चाहिए । इससे बिहार में समग्र विकास होगा ।
आज बिहार की धरती को वैसे ही भावना और संकल्प-शक्ति से युक्त लोगों की आवश्यकता है जो आम आदमी के अन्तर्मन में बैठ अदम्य साहस वं शक्ति तैयार कराकर वर्त्तमान बिहार का कायाकल्प कर सके । यह सही है कि संकल्प जहाँ आंतरिक दृढता प्रदान करता है वहीं विवके लक्ष्य निर्धारण करने में महत्वपूर्ण भुमिका आदा करता है नैतिक और शैक्षिक शक्ति आपस में घुल-मिल समान्य मनुश्य को भी आसामान्य बना देता है। क्योकि संकल्प शक्ति में बारूद की ज्वलनशीलता, भाप का बल और घूप की गर्मी निहित रहती है।
बिहार का विकास बिहारी ही कर सकते है चाहें वह बिहार में हो या बिहार से बाहर । उनका वेैचारिक एवं रचनात्मक सहयोग से ही ‘‘नये बिहार’’ का निर्माण होगा। बिहार के विकास के लिए हर बिहारवासी को अपने-अपने क्षेत्र में एक ‘‘बिहार विकास विजन - 2020 बनाकर, संकल्पित अभियान शुरू किया जाना चाहिए। इसके लिए अभी 22 मार्च तक का एक समय है और सभी लोग इसे आसानी से बना सकते है । इसे हर संस्था अपने बुकलेट, वेबसाईट पर प्रकाशित कर सकते है। व्यक्ति विशेश स्कूली बच्चे, युवा, सरकारी कर्मचारी एवं अन्य सभी लोग अपनी डायरी में ‘‘बिहार विकास विजन - 2020 को लिख सकते है । इससे सभी लोग अपने आप को जोड़ पायेंगे साथ ही साथ एक सकारात्मक पहल भी वो कर पायेंगे । इसे एक मिशनरी विजन के रूप में लिया जाना चाहिए । सरकार के सभी विभागों को भी ‘‘बिहार विकास विजन - 2020 का योजना बनाना चाहिए । सरकारी स्तर पर इसे एक मिशन और अभियान के रूप में लोगों को अपील किया जाना चाहिए । हर दस वर्शों का विजन बनना चाहिए , जैसे
‘‘बिहार विकास विजन - २०३०/ २०४०/ २०५०/ २०६०’’ ....
और ‘‘बिहार विकास विजन - 2100 ।